श्री काशी विश्वनाथ मंदिर

Last Updated on September 8, 2024 by PuraanVidya

सम्पूर्ण विश्व में काशी को मंदिरों का शहर कहा जाता है। यहाँ आपको हर गली से लेकर हर चौराहे पर कोई न कोई मंदिर मिल ही जायेगा, और यहीं पर स्थित है 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री काशी विश्वनाथ जी का मंदिर। वैसे तो बाबा विश्वनाथ अनादि काल से काशी में विराजमान हैं, और यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के पश्चात भगवान श्री काशी विश्वनाथ के दर्शन करने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसी दास और सद्गुरु जग्गी वासुदेव जैसे महान व्यक्तियों का यहाँ आगमन हुआ।

श्री काशी विश्वनाथ

ऐसी मान्यता है कि 6 वीं शताब्दी में जब गुप्त वंश का शासन था उसी समय श्री काशी विश्वनाथ के प्राचीन शिवायतन की स्थापना हुई थी, जो बाद में काल-चक्र प्रवाह में लुप्त हो गया। इसके पश्चात बहुत समय बाद 14 वीं शताब्दी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। परंतु विदेशी शासकों द्वारा इस मंदिर की भव्यता और इसकी प्राचीनता देखी नहीं गई, अतः परिणाम स्वरूप इस मंदिर को विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा ध्वस्त करा दिया गया।

औरंगज़ेब ने ज्ञानवापी मस्जिद को नहीं बनवाया था, अपितु यह काशी का प्राचीनतम ज्ञानवापी नामक स्थान था। यहीं पर एक कुआं स्थित है जिसे ‘ज्ञानवापी’ की संज्ञा दी जाती है। वही पर एक मस्जिद बनाई गई जिसे ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। परंतु काशी का सबसे प्राचीनतम स्थान ज्ञानवापी जहां पर काशी विश्वेश्वर मंदिर स्थित था, 11 वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र द्वारा इसका जीर्णोद्धार करवाया गया। परंतु सन 1194 में मोहम्मद गौरी द्वारा इस मंदिर को लूटने के पश्चात पुनः इसे तुड़वा दिया गया था।

औरंगजेब के आदेश पर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर (जो स्थान ज्ञानवापी के नाम से भी जाना जाता था) को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आपको ज्ञानवापी मस्जिद के पिछले हिस्से को देखकर ही मिल जाएगा, आप मस्जिद के साथ पुराने मंदिर की दीवार भी देख सकते हैं, जो आज भी वैसे का वैसा ही स्थित है। इसके साथ ही औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था। आज उत्तर प्रदेश के लगभग 90% मुसलमानों के पूर्वज ब्राम्हण ही हैं।

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को पुनः सन 1447 में जौनपुर के सुल्तान मुहम्मद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। इसके काफी समय बाद सन 1585 ई० में राजा टोडरमल के समय में पंडित नारायण भट्ट ने पुनः श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया। इस का लिखित संदर्भ आपको डॉ. एएस भट्ट की पुस्तक ‘दान हारावली’ में मिल जाएगा की किस प्रकार बादशाह अकबर के मंदिर विध्वंस करने के बाद टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1558 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगज़ेब द्वारा जारी एक फरमान में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया गया। उसका यह फरमान आज भी एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में सुरक्षित है। इस विध्वंस का वर्णन उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित मासीद-ए-अलमगीरी में भी मिलता है। 2 सितंबर सन 1669 को औरंगजेब के निर्देश पर श्री काशी विश्वेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया।

इतिहास में कई बार ध्वस्त हुए इस मंदिर का अंतिम निर्माण सन 1777 / 1780 में मालवा साम्राज्य (इंदौर) की रानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा करवाया गया। अहिल्याबाई होलकर भगवान शिव की भक्त थी। एक रात स्वप्न में उन्होंने भगवान शिव के दर्शन किए, अतः उन्होंने मन ही मन श्री काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाने का प्रण लिया। इन्होंने उस स्थान से दूर मंदिर निर्माण कराया जिसे आज काशी विश्वनाथ मंदिर अथवा श्री काशी विश्वेश्वर मंदिर कहते हैं। सन 1853 में महाराजा रणजीत सिंह नें इस मंदिर के शिखर को 1000 किलोग्राम शुद्ध सोने से मढ़वा दिया। जिस कारण यह स्वर्ण मंदिर के नाम से भी प्रख्यात है।

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर गंगा के तट पर स्थित है। यह मंदिर संकरी विश्वनाथ गली में स्थित कई मंदिरों और पीठों से घिरा हुआ है। यहाँ मंदिर के उत्तर में एक कुआं में स्थित है जिसे “ज्ञानवापी” की संज्ञा दी जाती है।

दर्शन के विशेष दिन

वैसे तो प्रत्येक दिन बाबा विश्वनाथ का अभिषेक सुबह एवं शाम को गंगा जल से किया जाता है परंतु सावन के सोमवार के समय यहाँ भक्तों का मेला लगा रहता है। यहाँ बहुत दूर-दूर से भक्त दर्शन व जलाभिषेक करने आते हैं। इसी प्रकार से महाशिवरात्रि पर्व के समय भी बाबा का दरबार भक्तों से भरा रहता है। इसके अलावा प्रत्येक सोमवार को बाबा के दर्शन व पूजन के लिए यहाँ भक्तों की काफी भीड़ होती है।

श्री काशी विश्वनाथ की विशेषता

  • यह दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां स्वयं भगवान शिव माता शक्ति के साथ विराजमान है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ यहाँ विराजते हैं। यह बहुत ही अद्भुत है। ऐसा संपूर्ण विश्व में में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।
  • काशी में स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दो भाग हैं। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान है। तथा दूसरी तरफ स्वयं भगवान शिव वाम रूप (सुंदर रूप) में विराजमान है। इस कारण इसे काशी का अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है।
  • माता भगवती के दाहिनी ओर विराजमान होने से मुक्ति का मार्ग केवल काशी में खुलता है। यहाँ मनुष्य को संपूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान शिव स्वयं यहाँ तारक मंत्र देकर लोगों को तारते हैं। अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य बिना शिव आराधना के मुक्ति नहीं पा सकता है।
  • तंत्र की दृष्टि से बाबा विश्वनाथ के दरबार में चार प्रमुख द्वार हैं- 1. शांति द्वार, 2. कला द्वार, 3. प्रतिष्ठा द्वार, 4. निवृत्ति द्वार, तंत्र में इन चारों द्वारका अपना एक अलग ही स्थान है। पूरे विश्व में ऐसा कोई भी स्थान नहीं है जहां साक्षात् भगवान शिव माता शक्ति के साथ विराजमान हो और तंत्र द्वारा भी हो।
  • बाबा विश्वनाथ के गर्भगृह का शिखर श्री यंत्र से मंडित है। अतः यह तंत्र साधना अथवा तांत्रिक सिद्धि के लिए उपर्युक्त स्थान है। इस स्थान को श्री यंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है।
  • बाबा विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह के ईशान कोण में स्थित है। इस कोण का अर्थ होता है संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार। यह तंत्र की 10 महाविद्याओं का अद्भुत दरबार है, जहां भगवान शिव का नाम ईशान है।
  • यहाँ श्रृंगार के समय सभी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती है। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों एक साथ ही विराजते हैं जो अपने आप में बहुत ही अद्भुत है। ऐसा संपूर्ण विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलता है।
  • यहाँ पर मैदागिन क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदी तथा गोदौलिया क्षेत्र जहां गोदावरी नदी बहती थी। इन दोनों नदियों के बीच में ज्ञानवापी में स्वयं भगवान शिव विराजते हैं। मैदागिन-गोदौलिया इन दोनों स्थानों के बीच में ज्ञानवापी नीचे है, यह ग्राफ पर एक त्रिशूल की तरह दिखता है। भौगोलिक दृष्टिकोण से बाबा को त्रिकंटक विराजते अर्थात त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी भी प्रलय नहीं आ सकता है।
  • बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान है। बाबा दिन भर गुरु के रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि के 9:00 बजे जब बाबा का श्रृंगार आरती किया जाता है उस समय वह राज वेश में होते हैं। अतः उन्हें राजराजेश्वर भी कहा जाता है।
  • बाबा विश्वनाथ के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति जन्म जन्मांतर के पाप से मुक्त हो जाता है। शिवरात्रि के समय बाबा विश्वनाथ अवघड रूप में विचरण करते हैं। उनके साथ में भूत, प्रेत, जानवर, देवता, पशु और पक्षी इत्यादि शामिल होते हैं।

हर हर महादेव

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